आजके हमारे लेख का विषय है: 15 August speech in Hindi यानि स्वतंत्रता दिवस पर भाषण. किसी भी भारतीय के लिये पंद्रह अगस्त का दिन कितना गौरवशाली और महत्वपूर्ण होता है. इसके बारे में किसीको बताने की जरुरत नहीं है. यह एक ऐसा सुनेहरा दिन है. जिसे साकार करने के लिए भुतकाल में असंख्य भारतियो ने अपना बलिदान दिया था. उनके त्याग और अथक परिश्रम के कारण आज हम खुली हवावो में साँस ले पा रहे है.

तो मित्रो अगर आप इस 73 वे आज़ादी के जश्न पर अपने पाठशाला और स्कूल में स्पीच देकर सबको आकर्षित करना चाहते है. तो हमारे इस 15 August speech in Hindi को जरा ध्यान से पढ़िए. इस लेख में बड़े ही आसन और कम शब्दों में Independence Day के ऊपर स्पीच दिया गया है.
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स्वतंत्रता दिवस पर भाषण – 15 August speech in Hindi
यहापर उपस्थित आदरणीय प्रधानाचार्य, अतिथिगण, अध्यापकगण और मेरे प्रिय सहपाठियो सबसे पहले तो आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं! आज हम यहाँ किस लिये इक्कठा हुये यह आपको बताने की जरुरत नहीं है. लेकिन फिर भी बड़े ही गर्व भरे सुर में कहना चाहूँगा. आज यहापर आज हम आजादी का जश्न मनाने उपस्थित हुये है.
आज जिनके बजेसे में यहाँ खड़ा होकर दो शब्द बोल पा रहा हूँ. उन सभी स्वतंत्र सेनानियो को में कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ और अपने भाषण को शुरवात करता हूँ.
क्या आप आज़ादी क्या है? यह बता सकते है. अगर हम आज़ादी को किसी दो शब्दों से बांधने की कोशिश करे तो यह मुंकिन नहीं है. आज़ादी इस शब्द में अथांग सागर और ब्रह्मांड की शक्ति समाविष्ट है. दुनिया के प्रत्येक एक जिव, प्राणी और व्यक्ति को जीने के लिए स्वतंत्रता चाहिये होती है. पर दुर्भाग्यवश ऐसा कहना पड रहा है. जिन हवावो में हम आझादी की सांस ले रहे है. सुकुन की जिंदगी जी रही है. उस देश की स्वतंत्रतता किसी ने छीन लि थी.
मित्रो हिदुस्तान पर हमेशा से ही परकीय शाशनो और राजाओं ने आक्रमण किया है. जिसमे निजाम एवम मुग़ल साम्राज्य के बारे में सुनने को मिलता है. यह बात भी सच हे की, हमारे देश में उस काल राजतंत्र था और मेरा भारत तो था ही इतना समृद्ध की इसे देखने की हर किसी की इच्छा होती थी.
उन दिनों भारत एक सोने की चिडिया का देश के नाम जाना जाता था. इसीलिये 17 वि सदी से यूरोपीय व्यापारियों का भारत में आगमन हुआ. भारत को देखने के मंषा से यूरोपीय व्यापारियो ने भारतीय माहाद्विप में पैर जमाना शुरू कर दिया था. यूरोपियन व्यापारियो में पोर्तुगीज, डच, फ्रेच, जर्मन और इंग्लैंड इत्यादि. देशो का समावेश था.
यूरोपियन देश हमारे यहाँ आकर व्यापार करने लगे यहाँ तक तो ठीक था. परंतु, अग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की और अपने सैन्य की बढ़ोतरी करने लगे. इसी बदलाव से अग्रेंजो की निति ही परिवर्तित हो गयी. उनकी हिंदुस्तान पर कब्ज़ा करने की चाहत थी. पर भारत की एकता और कुछ महान राजाओ के कारण इंग्लैंड ने सीधे हमला नहीं किया.
अग्रेजों ने सबसे पहले भारत के राजकारण में शिरकाव किया. सबसे पहले उन्होंने व्यापार करने के लिए परवानगी लि, कुछ छोटे-मोठे करार कीये. लेकिन कुछ ही दिनों बाद अग्रेज इस बात को खूब अच्छेसे जान गए थे. की, भारत में भाईचारा और भाई-भाई में झगडा बहुत ज्यादा हे, यहां के राजा के लिये सत्ता और जीत बहुत महत्वपूर्ण है. इसीलिये वे सबसे पहले राजाओ को अमिष दिखाने लगे. जैसे “हमारे साथ हात मिलालो हम आपको सैन्यबल देने में मदत करेंगे” सरदारों को राजा बनाने अथवा कोई जहागीर देने का झुटा वादा करने लगे.
इसी रणनीति और कूटनीति के सहारे, धीरे-धीरे अग्रेजों ने 18वि सदी में भारतीय स्थानिक राज्यों को अपने वश में करके, अपने आप को स्तापिथ कर लिया था. उसके बाद शुरू हुयी जुल्मो की बारिश, अपने ही वतन में परिकियो का अत्याचार सहना पड रहा था. ऐसे अत्याचार जो अमानवीय थे मानव धर्म को शोभा न देने वाला कृत्य था.
पन्द्रह अगस्त (15 August) स्वतंत्रता दिवस पर भाषण
फिरंगी हमारे पूर्वजो पर जानवरों की तरह बर्ताव करने लगे. काला और गोरा रंग में भेद करने लगे. फिरंगियो ने हमारे लोगो को मजदुर बना दिया उनसे दिन-रात काम करवाने लगे. इतना सब सहन करने बाद भी गरीब मजदूरो को मारते-पिटते थे. जैसे ही शाम ढलकर नयी सुबह होती. अग्रेजों की भारतीयों के साथ उतनी ही क्रूरता बढती थी.
उन्होंने गरीब किसानो से अपने मुताबिक फसल लगाने का अधिकार भी छीन लिया था. उदाहरन के लिये, उन्होंने किसानो को नील, कपासी और मसाले की खेती करने के लिए जबरदस्ती की. किसी साल में किसान की फसल अच्छी आयी या नहीं अथवा दुष्काल था बारिश अच्छी हुयी. इस बात से अग्रेजो को कुछ भी लेना-देना न था. वो तो इस बात पर अड़े थे. चाहे जो कुछ भी हो जाये आपको कर देना ही होगा. इसी तरह से वे हिन्दुस्तान की फसले और संपत्ति जबरदस्ती प्राप्त करके इग्लैंड ले जाते और उनके वतन का विकास करते थे.
जैसे-जैसे दिन बीतते चले गए उनके जुल्म और अत्याचार बढ़ते ही जा रहे थे. उनके इस अत्याचार को सहना नामुनकिन हो गया था. तभी सारे भारतीयों ने ठान लिया चाहे कुछ भी जाये. अभी हमें स्वतंत्रता चाहिये. ब्रिटिशो को हमारा वतन लौटाकर भागना ही होगा.
इसी विचारधारा के साथ, सर्वप्रथम सन 1857 में सबसे पहले स्वतंत्रता की जंग छेड दी गयी. इस आज़ादी की लढाई की मशाल जलाने काम सबसे पहले झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया. उनके इस महान कार्य को याद करते हुए आज भी हम कहते है. खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी की रानी थी. सच में वह माँ दुर्गा की स्वरुप थी. किसी मर्द ने पहले हिम्मत नहीं की थी. वो हिम्मत इस मर्दानी ने दिखाई.
रानी लक्ष्मीबाई के पति का देहांत हो गया था. इसीलिये झाँसी राज्य की जिम्मेदारी इनके कंधो पर आ गयी थी. वो एक माँ भी थी. जिसने अपने बच्चे को पीठ पर बांधकर क्षत्रु से दो हात किये. फिरंगियो के खिलाफ इस लढाई में रानी लक्ष्मीबाई के साथ उनके गुरु तात्या टोपे का भी अहम योगदान था. परंतु, बाकी मंत्रियो और राजाओ के सत्ता के लालसा के कारण सन 1857 में झिड़की हुयी जंग विजय नहीं पा सकी.
परंतु, आज़ादी की क्रांति की शुरुवात तो हो चुकी थी. जो संपूर्ण भारतवर्ष से आवाज उठाने लगी थी. हर प्रांत, जात, पंत, धर्म के व्यक्ति का यही सपना था. की अपने वतन को ब्रिटिशो से मुक्त करना. जिसके लिए लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, चंद्रशेखर आज़ाद, स्वातंत्रवीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरु, इत्यादि. महापुरुषों ने इस लढाई को आगे भी चालू रखा.
भारत के आज़ादी के लिए हर कोई अपने तरीके से प्रयत्न करता था. चंद्रशेखर आज़ाद आक्रमकता से ब्रिटिशो पर टूट पड़े थे. चंद्रशेखर आज़ाद ने काकोरी ट्रेन डकैती, वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास , लाला लाजपत राय जी के मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी ऐसे कुछ महत्वपूर्ण हमले किये थे.
वही दूसरी तरफ साउथ अफ्रीका से स्वदेश लौटकर आने वाले महात्मा गाँधी जी ने शांतिपूर्वक आंदोलने की. उनमे सन 1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 में नमक सत्याग्रह और दांडी यात्रा, सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन, इत्यादि. जैसे प्रमुख आंदोलने का समावेश है.
सुभाषचंद्र बोस के “तुम मुझे खून दो, में तुम्हे आज़ादी दूंगा.” इस वाक्य और लोकमान्य तिलक के “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, और वो हम पा कर ही रहेंगे.” इस वाक्य ने युवावो के दिल में क्रांति जला दी. उनको लड़ने का सामर्थ्य दिया.
ऐसे ही न जाने कितने स्वतंत्र सेनानी ने अपना योगदान दिया. आज़ाद भारत के इस स्वप्न को पूरा करने लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया. आखरी साँस तक नियति से लढते रहे जुजते रहे. पर आखिरकार नियति को भी इस सामर्थ्य के सामने घुटने टेकने पड़े.
दुर्भाग्यपूर्व काल का अंत हो गया. वो सुनहरी तारीख थी 15 August 1947. जिस दिन एक काले और खतरनाक सपने का अंत हुआ और सुनहरी सुबह हो गयी. ब्रिटिशो ने भारत पर देडसो साल राज किया. उस राज को ख़त्म करने के लिए सन 1857-1947 इस नब्बे वर्ष के समय तक भारतीयों कड़ा संघर्ष करना पड़ा.
कभी-कभी यह सोचकर भी बुरा लगता है. की, मुठ्ठीभर ब्रिटिशो ने कैसे पुरे भारत पर इतने सालो तक शाशन चलाया. सचमुच ऐसे भयानक परिस्थिति से निकलना बहुत कठिन था. परंतु, मेरे और आपके पूर्वजो ने काल से टक्कर ली. आजादी भिक में नहीं बल्कि वीरता से लड़कर छीन ली.
आज हमें इस स्वतंत्रता दिवस पर उतना गर्व होता है. उतनि ही ख़ुशी और गर्व 15 August 1947 में भारतवासियों को हुआ था. चौदा और पंद्रह अगस्त उन्निसो सहेतालिस की मध्यरात्रि में देश के पहले प्रधानमंत्री श्री. पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने लाल किले पर भाषण दिया. जब पूरी दुनिया सो रही थी तब नेहरु जी ने लाल किले पर भाषण दिया था. मानो उस दिन करोडो भारतीय जश्न मनाकर और चिल्ला कर पूरी दुनिया को बता रहे है. की “हमारा भारत आजाद हुआ”
इतना कहकर में मेरे दो शब्द को पूर्णविराम लगता हूँ.
जय हिंद! जय भारत!
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Conclusion –
तो आज के लेख में आपको 15 august speech in Hindi बताया गया. I hope, आपको यह स्पीच काफी पसंद आया होगा. अगर सचमुच यह भाषण पसंद आया हे, तो इसे अपने स्कूल में सबको सुनाओ. अपने विचार हमें बताना चाहते हो तो नीचे कमेंट जरुर करिए गा.
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Very nice dear Rushi. Well done!! Keep it up!!
Thanks uncle
Bahut hi badhiya
Thanks