गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है. इस दिन सभी पूजाओ में प्रथम वंदनीय और बच्चो के प्यारे गणपति बाप्पा का आगमन का होता है. गणेश चतुर्थी यह त्यौहार भारत के विभीन्न प्रांत और भागो में मनाया जाता है. परंतु, महाराष्ट्र राज्य में यह फेस्टिवल बड़े ही जल्लोष और धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्यौहार लोग मिल-जुलकर मनाते हे, कही जगहों पर भगवन गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमा लगाते है.
पुरानो और शास्रो के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बाप्पा का जन्म हुआ था. ये भगवन शिव और माता पार्वती के बेटे है. उनके जन्म के पीछे एक बड़ी ही अद्भुत कहानी जुडी हुयी है. अगर अभीतक इस बारे में अपरिचित है. तो इस लेख को पूरा पढिये क्योंकि इस लेख में हम भगवान गणेश के जन्म और त्यौहार कैसे मनाया जाता है. इस बारे में जानकारी लेने वाले है.
गणेश चतुर्थी कथा – गणपति बाप्पा के जन्म की कहानी
माता पार्वती और भगवान शिव यह दोनों कैलास पर्वत पर निवास करते थे. शिवजी तो हमेशा ही गुफा के बाहर बर्फ के चोटी पर अपनी साधना में तल्लीन रहते थे. शिवजी और पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिक जी भी हमेशा से संसार में फिरते रहते थे. तो ऐसे में माता पार्वती अकेली रह जाती थी. उनके साथ उनकी सहेलिया जया और विजया भी रहती थी.
माता पार्वती को स्नान करने में बड़े दुविधा हुआ करती थी. क्योंकि, शिवजी साधना में तल्लीन रहते थे और कब साधना से बाहर आके गुफा में आ जाये. इसका कोई भी वक्त नहीं था और कार्तिक जी तो बहार ही थे. तो उनके पास ऐसा कोई नहीं था जो वह स्नान करते वक्त बाहर पहरा दे सके.
जिसका माता को हमेशा से ही डर रहता था. की स्नान करते समय कोई अन्दर ना आ जाये. एक दिन ऐसा ही कुछ हुआ. पार्वती जी ने बाहर खड़े शिवगन “नंदी” को आदेश दिया और बोली, “नंदी में अन्दर स्नान करने जा रही हूँ. तुम मेरे आज्ञा के बिना किसी को भी अन्दर मत आने दो” तब नदी ने जवाब दिया. “जैसी आज्ञा माते.”
परंतु जैसे ही माता अन्दर चली गयी. नंदी ने देखा की सामने से शिव महल की तरफ आ रहे है. उनको देखकर नंदी बड़े ही दुविधा में फंस गया और सोचने लगा. की, अरे अब क्या करे? माता ने तो किसीको अन्दर नहीं आने देने का आदेश दिया. परंतु, सामने तो साक्षात् प्रभु मेरे भगवान आ रहे है. उन्हें कैसे रोख सकता हु. अगर उन्हें रोखू तो वे नाराज हो जायेंगे और अन्दर जाने दू तो माता नाराज हो जायेगी.
नन्दी सोच ही रहा था. तो शिव नजदीक आ गये और उसीसमय नन्दी ने प्रणाम करने के लिये शिर झुका दिया. इस्से पहले की नंदी शिवजी से कुछ कहता. वे अन्दर चले गए थे. पार्वती स्नान कर रही थी और उन्होंने शिवजी को सामने देखकर वो बड़े ही क्रोधित हो गयी. उसी वक्त उन्होंने ठान लिया की में अपने लिये एक “अंगरक्षक” बना लुंगी. जो सिर्फ मेरी और मेरी आज्ञा का पालन करेगा. क्योंकि, अगर किसी भी शिवगण को बाहर पहेरा देने को बोला तो वो शंकर जी के सामने नतमस्तक हो जाते है. जिससे आज्ञा का उल्लघन हो जाता है. अपने लिये कोई द्वारपाल रखने की सलाह उनकी सहेलियेया जया और विजया ने भी दी थी.
पार्वती का निर्णय हो चुका था. फिर उन्होंने अपने मैल और उबटन से एक बच्चे के आकर की प्रतिमा बना लि और उसमें प्राण डाले. प्राण डालने के बाद पार्वतीजी ने उस बच्चे से कहा की, “बालक तुम आजसे मेरे पुत्र हो, में तुम्हारी माता हूँ, तुम्हारा नाम गणेश है; और तुम आजसे मेरे आज्ञा का पालन करोगे.” इतना कहने के बाद थोड़ी ही देर में, पार्वती ने कहा गणेश में स्नान करने जा रही हूँ. मेरे आदेश के बिना किसी को अंदर मत आने दो.
माता के उपदेश का पालन करते हुये बाल गणेश द्वारपाल बने और दरवाजे के बाहर खड़े हो गए. परंतु, पिछली बार की तरह इस बार भी भगवान शंकर आ गये. उन्हें देखकर गणेशजी उनके सामने खड़े हो गए. यह देखकर शंकर आश्चर्यचकित हो गये. और उस बालक से बोले…
- शिव – बालक कोण हो तुम? मुझे अंदर जाने दो.
- गणेश – नहीं में मेरे माता के आज्ञा का पालन कर रहा हूँ. उनके आदेश के बिना में किसी को अंदर नहीं दूंगा.
- शिव – ये देखो बालक, में इस महल का धनि हूँ और पार्वती का पति मुझे अन्दर जाने दो.
- गणेश – नहीं! नहीं! चाहे जो कुछ भी हो जाये में किसीको अन्दर नहीं जाने दूंगा.
- [शिवजी ने गणेश जी को धक्का देकर अन्दर जाने की कोशिश की परंतु बाप्पा ने उनके ऊपर लकड़ी से वार किया.]
- इस्से शंकर भगवान बड़े क्रोधित हो गए. परंतु, उन्होंने ऐसा सोचा की “में पुरे ब्रह्मांड का भगवान हूँ में इतने छोटे बच्चे पर शाशन करू यह उचित नहीं है.”
इतना सब होने के बाद शंकर भगवान वहासे चले गए. और उनके गन नंदी और भ्रिगी को गणपति जी को समझाने को भेजा. परंतु, सभी असफल रहे और मार खाकर वापस आ गए. महादेव क्रोधित हो गए और उन्होंने बाकी के लोगो को इस काम को पूरा करने के लिये भेजा. लेकिन विनायक के शक्ति के सब झुक गए और एक-एक करके मार खाके वापस आ गये.
महादेव बड़े ही क्रोधित हो गए और स्वयं युद्ध करने का निर्णय ले लिया. दोनों के बिच भीषण युद्ध हुआ. अन्तः महादेवजी ने बालगणेश का शिर धड से अलग कर दिया. जब यह खबर माता पार्वती को पता चली तब उन्होंने क्रोधित होकर अपने अन्दर के सभी शक्ति को जगा दिया. और उनको आदेश दिया की जाओ तुमको रस्ते में जो भी भगवान, जिव नजर आये उन सबको ख़त्म करदो.
जैसे ही वो शक्तियाँ भगवानों के पीछे मारने आई. सभी अपने जान बचाकर भागने लगे. यहातक ही ब्रम्हा, विष्णु, महेश भी अपने जान बचाकर भागने लगे थे. तभी उनको एक सुरक्षित गुफा नजर आयी. सभी गुफा के अन्दर घुस गए और वह जाकर वार्तालाप करने लगे. की कैसे इस संकट से बहार निकले माता पार्वती के घुस्से को कैसे शांत किया जाये. पर सवाल यह था की माता के सामने उनको मनाने के लिये कोन जायेगा? तभी सभी देवताओं ने नारदमुनी को इस कार्य को सौफ दिया.
कर्त्तव्य को पूरा करने के लिये नारदमुनी पार्वतीजी के महल में मनाने के लिये गए. उनसे कहा, माता आपका क्रोध जायज हे. पर यह आपका स्वाभाव नहीं, अपनी अपने शक्तिओ को रोको नहीं तो सारे ब्रम्हांड का विनाश हो जाएगा. महादेव और सभी भगवानो से गलती हो गयी. तभी माता ने कहा ठीक पर एक शर्त पर में सब प्रलय रोख दूंगी. उनको मेरे बच्चे को पुनः जीवीत करना होगा और सभी देवताओं में मेरे पुत्र को महत्व का स्थान देना होगा.
नारदमुनी यह सब सुनकर वापस गुफा में चले गए. वहा जाकर उन्होंने पारवती के शर्तो के बारे में बताया. यह सुनकर सभी देवता खुश हो गये और युद्धभूमि में वापस चले गए. जहापर गणेशजी का शिर जमींन पर पड़ा हुआ था. उसके तुरंत बाद ही शिव जी ने अपने शिवगनों को आदेश दिया. “जाओ तुम सभी उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो भी पहला प्राणी तुमको दिखेगा. उसका सर लेकर आओ.” समस्त शिवगन आदेश का पालन करते हुये उत्तर दिशा की तरफ बढे. वहापर उनको प्राणी गजराज यानि “हत्त्ति” मिला. उन्होंने उसका सर काटकर उसे ले आये.
सबसे पहले ब्रम्हा ने मंत्र का उच्चारण करते हुये. बालगणेश के देह की शुद्धि की और विष्णु ने हत्ति का सर विनायक के धड पर रख दिया. तभी सारे देवताओ ने एक साथ मंत्र उच्चारण शुरू कर दिए. इस तरह थोड़ी ही देर में गणेश जी पुनः जीवीत हो गए. और तभी से इस दिन को “गणेश चतुर्थी” समझकर मनाते है. आज सभी देवो में गणेश जी को सर्वश्रेष्ठ भगवान मानते है. उनके बिना कोई भी पूजा संपन्न नहीं होती.
गणेश चतुर्थी कैसे मनाते है?
जैसे की मैंने आपको बता दिया. की गणेश चतुर्थी यह त्यौहार महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्यौहार पुरे दस दिनों का होता है. सरकारी स्कूलो में बच्चो को छुट्टी भी दी जाती है. इस दस दिनों में हर घर में सुबह-शाम दूर्वा चढ़ाकर गणपति की आरती भी की जाती है. गणेश जी को भोग में मोदक काफी पसंद है. इसीलिये प्रसाद के रूप में उनको मोदक चड़ाए जाते है.
दस दिनों के कार्यकाल में स्पर्धा का आयोजन किया जाता है. “गणपति बाप्पा मोरया” ऐसा जयजयकार किया जाता है. फिर दस दिनों के बाद उनको पानी में विसर्जित करके उनको विदा किया जाता है. साथ ही “अगले साल जल्दी आओ” ऐसे भी कहा जाता है.
Conclusion –
तो चलिए मित्रो इस तरह से आज हमने गणेश चतुर्थी के बारे में जाना. इस दिन का महत्व गणपति बाप्पा के जन्म के पीछे की कहानी इन सभी के बारे पढ़ा. में उम्मीद करता हूँ लेख पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा. अगर सचमुच लेख अच्छा लगा है. तो इसे अपने मित्रो के साथ जरुर share कीजिये. ताकि उनको भी गणेश चतुर्थी के बारे hindi में पता चले.
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Hello Rushikesh,
aapne ganesh chaturthi ke baare me kaafi detail me post likha hai jo mujhe padh ke kaafi acha laga,hindi me blog post padhna mujhe bahut hi acha lagta hai.
Dhnayawad.
गणेश चतुर्थी के बारे में बहुत ही अच्छी बातें बताइए आपने
बहुत-बहुत धन्यवाद