इस साल गुरुवार 20 तारीख को “मुहर्रम” मनाया जाएगा. मुहर्रम इस्लाम धर्म के अनुसार इस्लामिक कैलेंडर का पहिला महिना होता है. परंतु, यह त्यौहार शोक और मातम का दिन समझकर मनाते करते है. आप और मेरे जैसे बहुत सारे लोगो को यह सवाल पड़ता है. की, आखिर यह “मुहर्रम क्या है और क्यों मनाते होंगे?” जरासल इसके पीछे बड़ा ही दर्दनाक हात्सा है.
जरासल मुहर्रम को मनाने के पीछे “कर्बाला” की कहानी जुडी हुयी है. जो इमाम हुसैन के कुर्बानी की याद दिलाता है. मक्का और मदीना के बाद कर्बला वो स्थान है. जहा जाने की हर शिया मुस्लिम की ख्वाईश होती है. क्योंकि इस स्थान पर इमाम हुसैन की कब्र मौजूद है. आखिर क्या हे कर्बला की कहानी ? इसीके के बारे में आजके पोस्ट में हम जानेंगे. पिछले लेख में हमने muharram shayari in hindi शेयर की थी.
मुहर्रम क्या है और कर्बला की कहानी
सबसे पहले आप इस बात को समझ लीजिये. की, मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहिला माहिना है. जिसे उर्दू भाषा में “हिजरी” के नाम से भी जाना जाता है. इतना ही नहीं हिजरी को इस्लाम के चारो पवित्र महीनो में अपना अलग स्थान है. परंतु कर्बला के घटना की वजह से यह शोक और मातम मनाने का त्यौहार बन गया.
कहानी आजसे कुछ 1338 साल पहले की है. उस समय से ही इस्लामिक लोग अपने धर्म के लिये प्रमुख व्यक्ति(खलीफा) को चुनते थे. मुहम्मद पैगंबर के 50 सालो बाद, भी 4 खलीफो को चुना गया था.
परंतु यह बात याजिद नाम के इराकी बादशाह को पसंद नहीं आयी. वो लोगो के मर्जी से चुने खलीफा को विरोध करने लगा था. वह पुरे इस्लाम धर्म का एकलौता प्रमुख बनना चाहता था. इसी इच्छा के कारण उसने स्वयं को ही खलीफा घोषित कर दिया. ऊपर से अवाम में उसके नाम से खौफ रहे इसीलिये उसने लोगो पर जुल्म करने शुरू कर दिए.
लेकिन मुहम्मद पैगंबर के नवासे (नाती), “इमाम हुसैन” अपने नाना के वसूलो पर चलता था. वह इस बात को हरगिज नहीं चाहता. की, कोई जबरदस्ती से इस्लाम धर्म का खलीफा बने और अवाम पर जुल्म करे. इसी वजह से हुसैन और याजिद के बिच जंग हुयी.
याजिद, हुसैन को झुकाना चाहता था. इसीलिये याजिद 8000 सैनिको को लेकर दो हात करने आया था. उस समय इमाम हुसैन के पास सिर्फ 72 लोग थे और यह जंग इराक के कर्बला(आज का सीरिया) स्थान पर हुयी थी. हुसैन के 72 लोगो में से भी बीवी, बच्चे और बूढ़े थे. याजिद ने हुसैन को झुकाने में हर सम्भवता कोशिश की थी. जैसे हुसैन के सामने उसके रिश्तेदारों और दोस्तों को मरवा दिया.
उस समय हुसैन का बच्चा मात्र 6 महीने का था. उसे काफी प्यास लगी थी. इमाम ने याजिद को उसे पानी पिलाने की इच्छा रखी. लेकिन याजिद इतना जल्लाद था की उसने उसे मासूम छोटे बच्चे को भी नहीं बक्शा और उसे मार गिराया. ताकि इमाम अन्दर से तुंट जाए और झुक जाये. लेकिन ऐसे बिल्कुं भी नहीं हुआ. यादिद जान चूका था की वह “इमाम हुसैन” के हौसलों के सामने हार गया है.
इमाम हुसैन की कुर्बानी और मोहरम मनाने का संबंद
जैसे की ऊपर के पैराग्राफ में बताया, की जब याजिद को अहसास हुआ की वो इमाम को नहीं झुका पाया और वो हार गया. तो उसने तुरंत ही इमाम हुसैन का सर काट दिया. इसी तरह से कर्बला के मिटटी पर हुसैन मिलाकर 72 अल्लाह के नेक बंदे शहीद हो गए थे. इस घटना के तुरंत बाद ही मुहर्रम को नया साल समझकर मनाना बंद हो गया.
याजिद ने इमाम हुसैन को शरीर से तो मार दिया परंतु, आजभी हुसेन की आत्मा और कुर्बानी लोगो के मन में जिन्दा है. जब करबला में यह 72 लोग शहीद हो गए वो “मुहर्रम” का महिना था और उस दिन 10 तारीख थी. इसीलिये हर वर्ष उन 72 लोगो के शहादत में शौक और मातम मनाने के लिये मुहर्रम मनाया जाता है.
मुहर्रम मनाने का रिवाज
इस दिन शिया मुस्लिम समुदाय के लोग काले कपडे पहनकर शोक मनाते है. इतना ही काले कपडे पहनकर अपने आप को कष्ट पहुचाते है. जैसे अपने जिस्म पर तलवार और चाकु से वार करते है. जबतक की शरीर से खुन न बाहर आये, तब तक वे अपने शरीर पर हानि पहुचाते रहते है. और यह इसीलिये ये सब करते है. ताकि कर्बला में इमाम हुसैन को हुयी यातनाओ को याद किया जा सके.
मुहर्रम के दौरान शिया मुस्लिम के लोग जुलु के तौर पर ताजिया निकालते है. यह मुहर्रम में काले कपडे पहनना और मातम मनाने का त्यौहार अगले 10 दिनों तक चलता है. ताकि कर्बला में शहीद हुये हुसैन के सहित उनके साथियो को याद किया जा सके.
Conclusion –
तो चलिए इस तरह से आजके लेख में हमने मुहर्रम क्या है? और मुहर्रम क्यों मनाते है यह जान लिया. में आशा करता हु की यह लेख आपको हमेशा की तरह काफी दिलचस्प लगा होगा और आपको कुछ नया जानने को मिला होगा.
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